“भारत को विश्व गुरु बनाने हमें शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करने की आवश्यकता : बृजमोहन अग्रवाल
रायपुर। गुरुकुल परंपरा, शिक्षा का एक प्राचीन भारतीय दर्शन है, जो ज्ञान और चरित्र निर्माण पर केंद्रित है। यह परंपरा केवल शैक्षणिक ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्रों को आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों का भी शिक्षण देती है। शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने गुरुवार को दुर्ग जिले के पाटन में सहजानंद अंतरराष्ट्रीय गुरुकुल के भूमिपूजन के अवसर पर यह बात कही।
बृजमोहन अग्रवाल ने कहा, “भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हमें शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करने की आवश्यकता है, जिसमें गुरुकुल परंपरा अहम भूमिका निभाएगी।” उन्होंने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह प्रणाली सदियों से ज्ञान का संरक्षण और प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि, “भारत की गुरुकुल प्रणाली शिक्षा और संस्कृत का एक अनूठा संगम रही है, जिससे भारत की दुनिया भर में अलग पहचान बनी है। गुरुकुल परंपरा से ही संस्कार, संस्कृति, शिष्टाचार, सामाजिक जागरूकता, मौलिक व्यक्तित्व और बौद्धिक विकास जैसे अमूल्य गुणों को अपनी आने वाली पीढ़ियों को विरासत में दिया जा सकता है।”
उन्होंने छत्तीसगढ़ वासियों के सौभाग्य की बात कही कि भारत की इस दिव्य विरासत को जीवित रखने के लिए यहां गुरुकुल की स्थापना की जा रही है। उन्होंने शास्त्री श्री घनश्याम प्रकाश दास और कृष्णवल्लभदास स्वामी का हृदय से आभार प्रकट किया, जिनके मार्गदर्शन में गुरुकुल का निर्माण हो रहा है।
इस मौके पर उपस्थित लोगों ने भी गुरुकुल परंपरा की सराहना की और शिक्षा के क्षेत्र में इसके योगदान को महत्व दिया। कार्यक्रम का समापन भारतीय संस्कृति और शिक्षा के इस अनूठे संगम के प्रति संकल्पबद्धता के साथ हुआ।