ज्योतिषधर्म/आध्यत्म/ज्योतिष

आज का हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग
दिनांक – 01 जनवरी 2025
दिन – बुधवार
विक्रम संवत् – 2081
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शिशिर
मास – पौष
पक्ष – शुक्ल
तिथि – द्वितीया रात्रि 02:24 जनवरी 02 तक, तत्पश्चात तृतीया
नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा रात्रि 11:46 तक तत्पश्चात श्रवण
योग – व्याघात शाम 05:07 तक, तत्पश्चात हर्षण
राहु काल – दोपहर 12:43 से दोपहर 02:04 तक
सूर्योदय – 07:24
सूर्यास्त – 06:01
दिशा शूल – उत्तर दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:35 से 06:28 तक
अभिजीत मुहूर्त – कोई नही
निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:17 जनवरी 02 से रात्रि 01:10 जनवरी 02 तक

व्रत पर्व विवरण – त्रिपुष्कर योग (प्रातः 03:21 से प्रातः 07:21 तक)
विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

तिलक और त्रिकाल संध्या

ललाट पर प्लास्टिक की बिंदी चिपकाना हानिकारक है, इसे दूर से ही त्याग दें ।

तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी अथवा गाय के खुर की मिट्टी पुण्यदायी, कार्यसाफल्यदायी व सात्त्विक होती है । उसका या हल्दी या चंदन का अथवा हल्दी-चंदन के मिश्रण का तिलक हितकारी है ।

भाइयों को भी तिलक करना चाहिए। इससे आज्ञाचक्र (जिसे वैज्ञानिक पीनियल ग्रंथि कहते हैं) का विकास होता है और निर्णयशक्ति बढ़ती है ।

सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देना चाहिए । इस समय आँखें बंद करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए ।

‘ब्रह्म पुराण’ के अनुसार जो विशुद्ध मन से प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं,वे अभिलषित भोगों को भोगकर उत्कृष्ट गति को प्राप्त करते हैं। इसलिए प्रतिदिन पवित्र होकर सुन्दर पुष्प-गंध आदि से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । सूर्य को अर्घ्य देने से रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनार्थी धन, विद्यार्थी विद्या एवं पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है । जो विद्वान पुरुष मन में जिस इच्छा को रखकर सूर्य को अर्घ्य देता है, उसकी वह इच्छा भलीभाँति पूर्ण होती है ।

सूर्य को अर्घ्य देने से ‘सूर्यकिरण युक्त’ जल चिकित्सा का भी लाभ मिलता है ।

सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय मौन होकर संध्योपासना है । इस प्रकार नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ता-ऐसा शास्त्रवचन है ।

ऋषि लोग प्रतिदिन संध्योपासना करने से ही दीर्घजीवी हुए हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व)

उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसका प्रतिबिम्ब न देखें ।

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