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उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा, पूर्वोत्तर अब देश के विकास का केन्द्र बिन्दु है

दिल्ली। उपराष्ट्रपति ने कहा कि “पूर्वोत्तर अब हमारे राष्ट्र के विकास के केन्द्र बिन्दु में है”। उन्होंने भारत के विकास की कहानी में पूर्वोत्तर क्षेत्र की बढ़ती प्रमुखता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “हम पूर्वोदय का एक ऐसा दौर देख रहे हैं जिसकी कल्पना इस देश के लोगों ने भी नहीं की थी।” श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि पूर्वोत्तर का परिवर्तन भारत की प्रगति को आगे बढ़ाने वाली समावेशिता की भावना का प्रमाण है। उन्होंने कहा, “दशकों से इस क्षेत्र को विकास और कनेक्टिविटी से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन आज यह एक मुख्य प्राथमिकता बन गई है।” उन्होंने इस बात पर विचार किया कि किस तरह क्षेत्र का विकास हर दिन तेजी से आगे बढ़ रहा है।

आज गुवाहाटी के पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय मेंकृष्णागुरु इंटरनेशनल स्पिरिचुअल यूथ सोसाइटी के 21वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा,“हमारे देश में परिवर्तन तंत्र के एक भाग के रूप में आपकी सहायता करने वाले ये तीन सिद्धांत हैं: किसी भी स्थिति में अपने आप को अध्यात्म से दूर न करें। कृष्णगुरुजी ने अध्यात्म का मार्ग सिखाया है और इस मार्ग से भटकना एक गलती होगी। इस मार्ग के साथ-साथ राष्ट्रवाद, आधुनिकता और तकनीकी विकास को भी ध्यान में रखें। जब ये तीनों एक साथ मिल जाएंगे जैसा कि यहां बताया गया है और जैसा कई साल पहले भी था-भारत के विश्वगुरु होने का दर्जा, दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति होने का दर्जा – फिर इसे कोई नहीं रोक पाएगा, यह सब आपके कंधों पर टिका है”।

उपराष्ट्रपति ने कृष्णगुरुजी की शिक्षाओं के प्रभाव की प्रशंसा करते हुए कहा, “कृष्णगुरुजी ईश्वरीय कृपा के सार को साकार करते हैं, जो अपने भक्तों के दिलों को प्रेम, सेवा और मानवता की शिक्षाओं से रोशन करते हैं।” उन्होंने कृष्णगुरुजी की शिक्षाओं पर जोर दिया, जिन्होंने सभी को “अपने से परे सोचने, समुदाय के लिए सोचने, राष्ट्र के लिए सोचने” के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत एक अनूठा देश है, जिसका भूगोल आध्यात्मिकता के केंद्रों से भरा हुआ है, जो देश की करुणा, एकता और सभी के कल्याण के प्रति समर्पण की विरासत को मजबूत करता है।

उपराष्ट्रपति ने आध्यात्मिकता के सहज गुणों पर प्रकाश डाला तथा सद्भाव और न्याय की ओर ले जाने वाले मूल्यों को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “मेरे मित्रों याद रखें, आध्यात्मिकता में कुछ सहज गुण हैं: प्रेम, करुणा, धैर्य, सहिष्णुता, क्षमा और जिम्मेदारी की भावना। जब हम इन मूल्यों को बढ़ावा देते हैं तो हम एक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण विश्व का आधार रखते हैं।”

उपराष्ट्रपति ने भारत के लचीलेपन और निस्वार्थ सेवा के इतिहास पर विचार किया, खासकर संकट के समय में। उन्होंने कहा, “हमारे इतिहास में हमें अनेक अवसरों पर देखा है जब हमारे महान नेताओं और आध्यात्मिक हस्तियों ने हमेशा संकट के समय में हमारा साथ दिया है और एक ऐसी संस्कृतिकोदर्शाया है, जहाँ चाहे वह कोविड-19 महामारी हो, भूकंप हो या कोई अन्य आपदा हो, हमारे मंदिर और आध्यात्मिक केंद्र लोगों को राहत प्रदान करने के काम के  लिए हमेशा आगे आए हैं।

भारत के प्राचीन ग्रंथों के महत्व पर विचार करते हुए उन्होंने कहा, “ये ग्रंथ – रामायण, महाभारत, भगवद गीता, उपनिषद और वेद – हमें क्या याद दिलाते हैं? यह कार्य एक उच्च उद्देश्य के लिए निर्देशित होना चाहिए, जिससे न केवल हमें बल्कि दूसरों और हमारे समुदायों को भी लाभ हो। आज भी यह संदेश बहुत प्रासंगिक है।”

उपराष्ट्रपति ने पूर्व के संबंध में भारत की विदेश नीति के विकास पर भी विस्तार से चर्चा की। “लुक ईस्ट का विजन जो 90 के दशक के मध्य में शुरू हुआ था, उसे प्रधानमंत्री मोदी ने लुक ईस्ट-एक्ट ईस्ट के साथ अधिक प्रभावशाली आयाम में बदल दिया। इसका मतलब यह है कि भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अधिक गहराई से जुड़ना शुरू कर दिया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि लुक ईस्ट-एक्ट ईस्ट नीति के माध्यम से भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को काफी मजबूत किया है, जिससे पूर्वोत्तरभारत का सामरिक और आर्थिक महत्व बढ़ा है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस ‘लुक ईस्ट-एक्ट ईस्ट’ नीति के कारण, जिसके तहत हम दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों तक पहुंच रहे हैं उसमें पूर्वोत्तर ने प्रमुख स्थान हासिल किया है। आज पूर्वोत्तर भारत अवसरों का स्थान बन रहा है।“ उन्होंने पूर्वोत्तर को एक जीवंत और संपन्न क्षेत्र के रूप में आकार देने में नीति की परिवर्तनकारी भूमिका को रेखांकित किया।

श्री धनखड़ ने पूर्वोत्तर की विशिष्ट पहचान और सांस्कृतिक विरासत की बढ़ती मान्यता पर गर्व व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “पूर्वोत्तर की विशिष्ट पहचान और संस्कृति की मान्यता बढ़ रही है। हाल ही में, हमने एक गौरवपूर्ण क्षण देखा जब बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत के साथ असमिया को भारत की शास्त्रीय भाषाओं में से एक के रूप में मान्यता मिलने से एक लंबे समय से चली आ रही मांग पूरी हुई है।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह असम के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। “इस मान्यता से असम को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय भाषा को साझा करने में मदद मिलेगी, जिससे पूरे देश में इसका प्रभाव और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण किया जाएगा।” उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र की विशुद्ध सुंदरता आत्मनिरीक्षण और ध्यान के लिए अनुकूल शांति का माहौल बनाती है, जिससे आध्यात्मिकता की गहन खोज और जीवन की परस्पर संबद्धता के लिए अधिक उत्साह प्राप्त होता है।”

अंत में, श्री धनखड़ ने प्रमुख आँकड़े भी साझा किए जो परिवर्तन के पैमाने को दर्शाते हैं: “पिछले 10 वर्षों में, केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में 3.37 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया है। ये सिर्फ संख्याएं नहीं हैं, ये सड़कों, रेलवे और हवाई अड्डों के साथ-साथ बेहतर कनेक्टिविटी की ठोस उपलब्धि को भी दर्शाते हैं।”

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