गरियाबंद। सरकार के द्वारा स्कूल जतन अभियान के तहत करोड़ो रुपए पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन धरातल में यह योजना की तस्वीर कुछ और बयां कर रही है। आज हम आपको राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कमार जनजाति के गांव की तस्वीर दिखाएंगे, जहां पर जिला प्रशासन की पूरी पोल खोलती तस्वीर देखने को मिल रही है। झोपड़ी में पाठशाला, दस्तावेज में लेंटर लेवल, धरातल में कुछ और।
गरियाबंद जिले के पहाड़ी में बसे घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के शासकीय प्राथमिक शाला हथौड़ाडीह में स्कूल भवन का छत ही गायब हो गया है। बदहाली का आलम यह है की राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति कमार जाति के नौनिहाल बच्चे का भविष्य अब भगवान भरोसे है। स्कूल में छत नही होने से गांव के एक झोपड़ी में पढ़ाई करने को आदिवासी बच्चे मजबूर है, जबकि स्कूल जतन अभियान के तहत 20 लाख रुपए स्वीकृत हुई है, लेकिन अब तक स्कूल भवन नही बन पा रहा है। बच्चो के भविष्य के साथ इतना भद्दा मजाक हो रहा हे की कागज में स्कूल भवन को लेंटर लेवल होना दर्शाया गया है, जबकि धरातल में नीव खोदकर छोड़ दिया गया है।
स्कूल जतन अभियान के तहत 20 लाख का भवन प्राथमिक शाला हथौड़ाडीह के लिए स्वीकृत हुआ, जिसका ऐजेंसी RES विभाग के जिम्मा था RES विभाग में निविदा जारी हुआ, लेकिन कोई निविदा कार नही आने से भवन को बनाने आदिवासी आयुक्त विभाग की कंधे जिम्मेवारी दी गई, लेकिन आदिवासी आयुक्त विभाग ने तो सारी हदें पार कर दी मई 2024 में स्कूल भवन के लिए नींव खोदकर छोड़ दिया गया है, जिसके बाद सुध लेना तो दूर कोई अधिकारी झांकने तक नही गया। हां इतना जरूर है की अपनी पीठ थपथपाने के लिए सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग ने दस्तावेज में लेंटर लेवल तक काम होना दर्शाया गया है, जबकि धरातल में नींव खोदकर छोड़ दिया गया है।
इधर इस मामले पर सहायक आयुक्त नवीन भगत का कहना है की स्कूल भवन को दो महीने में पूर्ण करा देंगे कागज में लेंटर लेवल होने की बात पर यह कहा की दस्तावेज में त्रुटि हुई है। वही बिंद्रानवागढ़ के कांग्रेस विधायक जनक ध्रुव ने स्कूल जतन अभियान में भारी भ्रष्टाचार का आरोप भी लगाया और सरकार को आड़े हाथ लेकर यह कहा की बीजेपी सरकार अधिकारियों लगाम लगाने में नाकाम साबित हो रहा है। यहां सिर्फ अधिकारी राज चल रहा है स्कूल जतन अभियान में जिले में 90 करोड़ की राशि आई थी, जिसमें सिर्फ 40 करोड़ ही खर्च कर पाया बाकी 50 करोड़ राशि वापस चली गई। इससे बड़ा दुर्भाग्य जनक बात और क्या हो सकती है बहरहाल देखना होगा की विदेशी पिछड़ी जनजाति कमार बच्चो को कब तक स्कूल भवन मिलेगा और कितने दिनों तक बच्चो को झोपड़ी में भविष्य गढ़ना होगा।