मातृ दिवस विशेष : दर्द और मुफलिसी में जीवन जीने को मजबूर सुपेबेड़ा गांव की महिलाएं
रिपोर्टर : लोकेश्वर सिन्हा
गरियाबंद। गरियाबंद जिले में किडनी पीड़ितो के गांव कहे जाने वाले सुपेबेड़ा के दर्द से अब कोई अनजान नही है, पिछले 17 सालो में यहां 130 से ज्यादा किडनी रोगियों की मौत हो गई, 2 दर्जन लोग अब भी बिमार है। राहत व बचाव के सरकारी दावे के बीच विधवा हो चुकी माताएं भी है जो अब बीमार से नही व्यवस्था से जूझ रहे।
जिले के देवभोग ब्लाक के मनरेगा दफतर में फाइलों को संजो रहे ये है। वैदेही और लक्ष्मी, दोनो उसी सुपेबेडा ग्राम के है, जहां किडनी के रोग काल बन कर आया। दोनों के पति शिक्षक थे, लेकिन किडनी रोग से लक्ष्मी सोनवानी के पति क्षितीराम की मौत 2014 में तो वैदेही क्षेत्रपाल के पति प्रदीप की मौत 2017 में हो गई।
बीमार से ग्रसित पति को जमीन, जेवर तक बेचना पड़ा, हाउस लोन निकाल कर इलाज में खर्च किए पर जान नहीं बचा पाए। दोनों के 3-3 संतान हैं, गुजर बसर व बच्चो के परवरिश की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर है। 2019 में राज्यपाल के दौरा के बाद इन्हें कलेक्टर दर पर प्रतिमाह 10 हजार पगार पर नौकरी मिल गई, लेकिन ये रुपए महंगाई के जमाने में गुजर बसर के लिए नाकाफी है। इन्हे आज भी बच्चो के बेहतर भविष्य के लिए मदद की आस है।
वैदेही बाई, पीड़ित मां (काली साड़ी में) :
किडनी के बिमारी से मुखिया के गुजर जाने के बाद गांव में और भी 80 से ज्यादा ऐसी बेवा है, जो परिवार चलाने बिना किसी सरकारी मदद के संघर्ष कर रही है। सिलाई मशीन पर बैठ कर धागा पिरोती ये महिला है। प्रेमशिला पति प्रीतम आडील के अलावा परिवार के सास ससुर की मौत 7 साल पहले एक एक करके बिमारी से हुई। छोटी ननद व दो बच्चे के भरण पोषण का जिम्मा अब प्रेमशिला के कंधे पर है।घर की हालत बता रही है की सिलाई मशीन के भरोसे किसी तरह भोजन का ही इंतजाम कर पा रही है। गांव की गोमती बाई हो या रीना आडील, यशोदा हो या हेम बाई सभी मजदूरी के भरोसे परिवार चला रहे है।
सरकार के निर्देश के बावजूद जिला पंचायत ने केवल महिला समूह का गठन कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है। पिछले 6 साल में 6 सिलाई मशीन देकर सारे महिलाओ के दर्द निवारण का दावा करने वाले जिला पंचायत के अफसर कैमरे के सामने नही आ रहे। इधर स्वास्थ्य विभाग के अफसर अपनी जिम्मेदारी निभाने की बात कह रही है ।