छत्तीसगढ़

मानसून का पैगाम लेकर आए प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्टार्क, गांव वाले बने पक्षियों के रखवाले

रिपोर्टर : लोकेश्वर सिन्हा

गरियाबंद। गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर ब्लॉक के लचकेरा गांव में प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्टार्क खुशहाली का संदेश लेकर पहुंचने लगे हैं। ग्रामीण उन्हें मानसून व खुशियों का संदेश लेकर आने वाले देवदूत मानते हैं, गाँव के जिस ओर नजर घुमाएंगे आपको हजारों की संख्या में सिर्फ ओपनबिल स्टार्क ही नजर आएंगे।

गाँव के निवासी इन पक्षियों को अपने बीच पाकर बेहद खुश नजर आ रहे है। और इसे कृषि कार्यों को लेकर शुभ भी मानते है। यहाँ तक कि इन पक्षियों को नुकसान पहुचाने या मारने पर गांव में अर्थदंड का प्रावधान रखा गया है साथ ही इतना ही नही इन्हे मोबाईल टॉवर के रेडिसियन का असर न हो इसलिए गांव में अब तक मोबाइल टॉवर लगाने की भी अनुमति नहीं दी गई है।

हर साल की तरह ओपनबिल स्टार्क नामक पक्षी ग्राम लचकेरा पहुंचे हैं। ग्रामीणों के अनुसार इनका आना अच्छे मानसून के करीब होने का संकेत है, इसीलिए वे इसे शुभ मानते है। एक लंबे अरसे से ये प्रवासी पक्षी हजारों की तादात में हर साल जून-जुलाई के महीने में परिवार बढ़ाने यहां पहुंचते हैं। एशियन बिल्डस्टॉर्क पक्षी का वैज्ञानिक नाम एनास्टम्स ओसीटेन्स है। प्रायः अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई में शुरू होता है। प्रजनन के लिए यह पक्षी प्रायः उन स्थानों की तलाश करते है, जहां पानी व पर्याप्त चारा मिलता है।

पक्षियों के मल में फास्फोरस, नाइट्रोजन, यूरिक एसिड आदि कार्बनिक तत्व होते हैं। जिन पेड़ों पर यह आवास बनाते हैं, उसके नीचे जमा मलमूत्र पानी के साथ बहकर खेतों की उर्वरकता को कई गुना बढ़ा देता है। यही कारण है, कि लचकेरा गाँव मे भी किसानों के खेतों में भी अच्छा फसल और पैदावार होता है। क्योंकि सैकड़ों सालों से ये पक्षी यहां पहुँच रहे है। इसलिए ग्रामीण भी इसे मित्र पक्षी कहते है।पक्षियों को मारने पर 1051 का जुर्माना भी है, सूचना देने पर 500 का इनाम चूंकि लचकेरा के ग्रामीण इसे अच्छी बारिश का सूचक मानते हैं अत: इसकी पूरी सुरक्षा भी करते हैं। गांव के लोग बाकायदा सुरक्षा समिति गठित कर इन पक्षियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करते हैं।

छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी व उनकी सहायक नदियों के आसपास के ग्रामों में अपना घोसला पेड़ों पर बनाते हैं। नर मादा दोनों मिलकर अंडों से निकले बच्चों को पालते हैं। जब ये थोड़े बड़े हो जाते हैं तो पूरा गांव बच्चों के कलरव से गूंजने लगता है। बच्चे जब उड़ने लायक हो जाते हैं तो ये सितंबर अक्टूबर तक वापस लौट जाते हैं।

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