मांझीनगढ़ गढमावली माता के दरबार में शनिवार को होगी भादोम जातरा

कोण्डागांव @ रूपेंद्र कोर्राम। कोंडागांव जिले के बड़ेराजपुर विकासखंड अंतर्गत आने वाले पठारिय ग्राम खल्लारी के मांझीनगढ़ में वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी शनिवार को लिंगों मुदिया एवं सोनकुवंर बाबा की अगुवाई में गढमावली याया के दरबार में भादोम जातरा होने वाला है। शुक्रवार को खलारी में माता पहुंचानी होगा शनिवार को सुबह से आस पास के गांव से बड़ी संख्या में देवी देवताओं के साथ सम्मिलित होंगे

ये हैं मांझीनगढ़

आपको बता दे प्राकृतिक सौंदर्यता एवं देवी स्थल के रूप में मशहूर बहुँतो इतिहास, संकृति को संजोए हुए मांझीनगढ़ जो खल्लारी से महज 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बस्तर बुम में स्थित मांझीनगढ़ क्षेत्र के गढ़ मांझीनगढ पठार के रुप में बहुत बड़े भूभाग पर फैला हुआ है। मांझीनगढ़ का नाम छतरी मांझी के नाम से पड़ा है। मांझीनगढ पहाड़ी में जहां तक नजर जाती है वहां तक हरियाली ही हरियाली और प्रकृति मनोरम दृश्य दिखाई देता है। मांझीनगढ़ पहाड़ी में पूर्वजों के बने सचित्र पहाड़ी के चारों ओर पत्थरों की दीवारों पर बनाया हुआ है जो जानकारो के मुताबिक यहां से चित्र लगभग 12 से 13000 साल पुराना जो उसे क्षेत्र के मानव जीवन शैली को दर्शाता है कि वह उस समय अपने जीवन को किस तरह से व्यक्तित्व किए, कैसे अपने जीवन – यापन किये। यहां शैलचित्र उस समय का बनाया हुआ है जिस समय इस दुनिया में किसी भी प्रकार की कृत्रिम रंग – कलर नाम का कोई भी आविष्कार नही हुआ था उस समय पूर्वजों ने ऐसा कौन से कलर में अपना जीवन का कहानी पत्थरों में शैलचित्र के माध्यम से छाप छोड़ चले गये। मांझीनगढ पहाड़ी में खल्लारी और उस क्षेत्र के प्रसिद्ध देवी गढमावली याया विराजमान है।

प्रतिवर्ष भादोम मास के दिन शनिवार को ही यहां जातरा होता है। जातरा के एक दिन पूर्व खलारी गांव में, गांव के सुख समृद्धि और गांव में कई प्रकार की महामारी को दूर करने के लिए गांव में माता पहुंचानी होता है। जिसमे गांव के प्रसिद्ध देवियों को गांव के हर गली घरों में परिक्रमा करवाया जाता है। शनिवार को सुबह जातरा के लिए मांझीनगढ पहाड़ी ओर निकल जाते हैं । इस जातरा में मांझीनगढ पहाड़ी के चारों दिशाओं में निवासरत सभी गांव के लोग अपने-अपने पेन शक्तियों (देवी – देवता) पुरखो को लेकर इस जातरा में सम्मिलित होते हैं। यहां सभी प्रमुख देवी देवताओं की उपस्थिति होने के बाद देवी देवताओं का परीक्षण होता है। परीक्षण में जो देवी देवता दोषी पाए जाते हैं उन देवी देवताओं को सजा भी दिया जाता है।

मानव जीवन में जिस तरह न्याय के लिए अदालत लगती है जहां पर लोगों को सजा सुनाया जाता है ठीक उसी प्रकार वर्ष में एक बार यहां भी देवी देवताओं का अदालत में मुकदमा चलता है और जो देवी देवता दोषी पाया जाता है उनको गढमावली याया साल भर में सुधारने का आश्वासन देता है अत्यधिक गलती किए रहते हैं ऐसे देवी देवताओं को सजा भी सुनाता है। परीक्षण के बाद जो देवी देवता परिवार का और गांव का नहीं होता है ऐसे देवी को खाई के नीचे रवागनी (परित्याग – विसर्जित) किया जाता है। उसके बाद यहां सभी देवी – देवताओं की विशेष सेवा – अर्जी विनती होती है, जिसमें फल – फूल के साथ जीव सेवा भी दी गई। सेवा- अर्जी विनती के बाद पहाड़ी में ही रात्रि विश्राम कर सुबह सूर्य उदय से पहले मांझीनगढ़ से अपने अपने गांव की ओर प्रस्थान प्रस्थान करते है। ऐसा परंपरा पूरी दुनिया में केवल बस्तर में ही देखने को मिलता है बस्तर की परंपरा और बस्तर की संस्कृति आज पूरे देश दुनिया के लोग देखने आते हैं।

बस्तर की हर पंडुम (त्यौहार) बस्तर के मूल निवासी लोग अपने पुरखों देवी देवताओं के साथ मिलजुल कर मानते हैं, कुछ भी काम करने से पहले गांव के प्रसिद्ध मुख्य देवी को पूछते हैं उसके बाद ही गांव में कुछ भी कार्य को करते हैं। जिस प्रकार परिवार में किसी कार्य को करने के के लिए परिवार का मुखिया को पूछ करके काम किया जाता है ठीक उसी प्रकार गांव में कुछ काम करने के लिए गांव के मुख्य देवी का पुकार करते हैं उन्हें पूछ जांच करते हैं उसके उपरांत ही गांव में कुछ कार्य को करतें हैं। इस जातरा के आने के बाद गांव में देवी देवताओं को बालिंग पंडुम (पोला त्यौहार) पर नया फसल को चढ़ाया जाता है। उसके बाद ही बस्तर की कुछ क्षेत्र के लोग नया खाई के त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।

यह परंपरा आज का नहीं है इस परंपरा को बस्तर के मूल निवासी पिढी दर पीढ़ी मनाते आ रहे हैं और संजो कर रखे हैं। और ऐसी परंपरा त्योहारों को गांव में निवासरत सभी समुदाय के लोग मनाते हैं क्योंकि गांव की परंपरा एक किसी एक व्यक्ति या किसी एक समुदाय से नहीं चलता गांव में निवासरत सभी भाई, सभी समुदाय मिलजुल कर ऐसी परंपराओं और त्योहार को मानते आ रहे हैं।पारंपरिक रूढ़िगत भादोम जातरा में सम्मिलित होने से पहले वहां के निम्न रूढ़िगत सावधानी बरतनी होती है

माता पहुचांनी के तैयारी में लगे ग्रामीण जन
गांव के देवी देवताओं के आने जाने का रास्ता को पहुंचानी के पूर्व गांव के ग्रामीणों के द्वारा हर घर से एक सदस्य उपस्थिति होकर साफ सफाई किया गया गांव के जिम्मेदारीन गुड़ी से उनके खपरवाली देवी के स्थान तक सभी को साफ सफाई किया गया

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