बीएड.डीएलएड विवाद पर हाई कोर्ट ने राज्य शासन को दी अंतिम चेतावनी

बिलासपुर। बीएड-डीएलएड विवाद को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बीएड-डीएलएड विवाद को लेकर राज्य शासन पर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर की है। जस्टिस अरविंद वर्मा की सिंगल बेंच में मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य शासन को 15 दिन का अंतिम समय दिया और स्पष्ट चेतावनी दी कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन न करने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, प्राथमिक स्कूलों में सहायक शिक्षक के पद पर डीएलएड डिप्लोमाधारी उम्मीदवारों की नियुक्ति होनी है। हाई कोर्ट ने भी इस पर जोर देते हुए राज्य शासन को आदेश दिया था कि बीएड डिग्रीधारी शिक्षकों को हटाकर मेरिट के आधार पर डीएलएड अभ्यर्थियों को नियुक्त किया जाए।

शासन की हीला-हवाली पर कोर्ट सख्त

कोर्ट ने राज्य शासन द्वारा भर्ती प्रक्रिया में अनावश्यक देरी को लेकर सवाल उठाए। शासन ने शैक्षणिक सत्र के बीच में प्रक्रिया पूरी करने में परेशानी का हवाला दिया, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर इस तरह की लापरवाही गंभीर है। कोर्ट ने कहा, “हमारे पास समय सीमा बढ़ाने का अधिकार नहीं है। आदेश का पालन हर हाल में करना होगा।”

अवमानना याचिका पर सुनवाई जारी

डीएलएड अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में चौथी अवमानना याचिका दायर की है। आरोप है कि राज्य शासन कोर्ट के आदेशों का पालन करने में टालमटोल कर रहा है। इस मामले में कोर्ट ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जवाब देने का निर्देश दिया था।

अंतिम मोहलत: 15 दिन

कोर्ट ने राज्य शासन को 15 दिन का अंतिम समय देते हुए भर्ती प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि तय समय सीमा में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई, तो हाई कोर्ट कार्रवाई के लिए बाध्य होगा।

अभ्यर्थियों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल

सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने डीएलएड अभ्यर्थियों की सूची कोर्ट में पेश की। इसके बाद कोर्ट ने सवाल किया कि प्रक्रिया पूरी करने में अब और कितना समय लगेगा। शासन की तरफ से संतोषजनक उत्तर न मिलने पर कोर्ट ने कहा कि देरी से स्पष्ट होता है कि शासन इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है।

आगे की राह

राज्य शासन के पास अब केवल 15 दिन हैं। यदि इस अवधि में प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो शासन को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। मामले की अगली सुनवाई में कोर्ट स्थिति की समीक्षा करेगा।

इस प्रकरण ने शासन के कार्यप्रणाली और न्यायालयीन आदेशों के अनुपालन पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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