रिपोर्टर : लोकेश्वर सिन्हा
गरियाबंद। गरियाबंद जिले के मैनपुर स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों ने शासकीय राशि का गबन कर आपसी बंदर बांट कर लिया। गबन का यह खेल 4 साल तक चलता रहा और अब जांच मे 3 करोड़ 13 लाख 43 हजार 931 रुपए की राशि की गड़बड़ी सामने आया है।
मामला सामने आने के बाद हुई विस्तृत जांच के बाद आज मैनपुर पुलिस में इसे लेकर मैनपुर के तत्कालीन बीएमओ सहित कुल 11 लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई है। इस गड़बड़ी में ट्रेजरी के कर्मचारियों के साथ पिछले कुछ ट्रेजरी अफसर भी शामिल थे यही कारण है कि पिछले तीन ट्रेजरी अफसर पर भी एफआईआर दर्ज हुई है।
कैसे किया गबन :
सोची-समझी रणनीति के तहत विभिन्न अधिकारियों/कर्मचारियों के लंबित वेतन/समयमान, वेतनमान, एरियर्स/क्रमोन्नति वेतनमान, एरियर्स/इ्रक्रीमेंट एरियर्स व अन्य देय स्वत्वों के नाम पर देयक तैयार कर राशि संबंधित कर्मचारियों के व्यक्तिगत खाते में अंतरित करने के स्थान पर बैंक शाखा मैनपुर में संचालित अपने कार्यालयीन चालू खाते में अथवा संलिप्त कर्मचारियों के व्यक्तिगत खाते में जिला कोषालय गरियाबंद से अंतरित करा कर बियरर चेक आदि के माध्यम से नगद राशि आहरित कर उक्त राशि का आपस में बंदरबांट किया जाना सिद्ध पाया गया है।
कैसे सामने आया मामला :
दूसरे की हस्तलिखित मुद्रा पृथक से कुट रचना किया जाकर कोषालय में देयक जमा किया गया। कोषालय द्वारा बिना किसी परीक्षण के ऐसे देयकों को पारित किया जाता रहा जो नियम विरूद्ध होने के साथ ही वित्तीय नियमों का उल्लंघन किया गया है, गड़बड़ी की अधिकांश राशि तो खुद बीएमओ मैनपुर के ऑफिस के करंट अकाउंट में जमा होती थी, मगर कई कर्मचारियों को सीधे ट्रेजरी द्वारा भुगतान उनके खाते में कर दिया गया। इसके बाद उनसे वेतन वह अन्य भुगतान न होने पर शिकायत के आधार पर जिला कलेक्ट्रेट से जांच दल गठित किया गया जांच में तत्कालीन बीएमओ तथा तीन ट्रेजरी अफसर सहित कुल 11 लोगों की संलिप्त पाई गई इसके बाद अब जाकर मामले में एफआईआर दर्ज की गई।
गरियाबंद में स्वास्थ्य कर्मियो के नाम बोगस फाइल के जरिए करोड़ो रुपए आहरण करने के मामले में 11 अफसर कर्मियो के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया गया है। मैनपुर बीएमओ के शिकायत पर यह मामला मैनपुर थाने में दर्ज हुआ है। दरअसल मैनपुर के तत्कालीन बीएमओ के.के. नेगी ने अपने अधीनस्थ 40 से ज्यादा कर्मियो के नाम पर 4 साल में 3 करोड़ 13 लाख 43 हजार 931 रुपए कोषालय से आहरण करा लिया। कर्मियो के वेतन और एरियस के बोगस फाइल बना कर बीएमओ कोषालय भेजते रहे,
वही कोषालय के अफसर बगैर सत्यापन के ही बीएमओ के.के. नेगी के बताए खाते में रकम डालते रहे। वित्तीय वर्ष 2016 से 2019 तक यह खेल चलता रहा। स्वास्थ कर्मी संगठन के शिकायत पर मामले की जांच भी हुई। और 2022 में मामले की अंतिम जांच भी जिला प्रशासन को सबमिट कर दिया गया था।लेकिन संलिप्त अफसरों के राजनीतिक रसूख के कारण मामला 2 साल से लटका रहा। सत्ता बदलने के बाद मामले की फाइल आगे बढ़ाई गई। मामले में तत्कालीन बीएमओ के.के. नेगी और तत्कालीन 3 कोष अधिकारी और सहयोगी 7 सहकर्मियों के खिलाफ धोखाधड़ी के विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
हैरानी की बात है कि कोषालय के आडिट में बंन्दरबांट के रकम पर आज तक आपत्ति क्यों नही हुई। मामले में अब जिला प्रशासन कोषालय के उस बजट की भी जांच करेगी। जिस मद से बेधड़क रकम जारी कर बंदरबांट किया जाता रहा। जिसमें कई और राज खुलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।