बलरामपुर @ सोमनाथ यादव। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में गर्मियों के मौसम में ‘हरे सोने’ की पैदावार होती है. ये हरा सोना यानी तेंदूपत्ता ही आदिवासियों की कमाई का सबसे बेहतरीन जरिया है. तेंदूपत्ते को हरा सोना इसलिए कहा जाता है क्योंकि इससे होने वाली आमदनी सोने-चांदी के बिजनेस के बराबर होती है. इससे राज्य सरकारों को भी मोटा मुनाफा होता हैl
आदिवासी परिवारों की आमदनी का प्रमुख जरिया है हरा सोना
तेंदूपत्ता बलरामपुर के इलाकों में जगंलों में रहने वाले आदिवासियों सहित सभी समुदायों की आमदनी का प्रमुख साधन रहा है. हरा सोना के नाम से मशहूर तेंदूपत्ता के संग्रहण करने वाले आदिवासियों की हालत पहले ज्यादा बेहतर नहीं थी. और इसका रेट भी कम था. लेकिन अब राज्य सरकार ने इस पर तवज्जो देनी शुरू की है.
खबरों के मुताबिक साल 2002 में प्रदेश में तेंदुपत्ता का मूल्य 400 रुपए प्रति मानक बोरा था. जिसे बढ़ाकर 1500 रुपए बोरा कर दिया गया. आज इसका दाम चार हजार रुपए प्रति मानक बोरा है. जिससे आदिवासियों की भी आमदनी बढ़ी है. आमदनी बढ़ने से संग्राहकों के जीवन स्तर में भी काफी सुधार आया है. l
मानक बोरा यानी एक बोरे में पत्तों की एक हजार गड्डी और हर गड्डी में 50 पत्ते होते हैं. इन पत्तों की गड्डियों को धूप में सुखाया जाता है. अप्रैल माह के शुरुआत में ही तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए ग्रामीण आदिवासी सक्रिय हो जाते हैं.
छत्तीसगढ़ राज्य सरकार प्रत्येक वर्ष लगभग 13.76 लाख परिवारों से तेंदूपत्ता का संग्रहण करवाती है. यह काम वन विभाग के राज्य लघु वनोपज सहकारी संघ के जिम्मे होता है. l
विदेशों में भी है हरा सोना की डिमांड
छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और भी कई राज्यों में इसकी अच्छी डिमांड है. वहीं तेंदूपत्ता का विदेशों में भी अधिक मांग है. बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान आदि कई मुल्कों में भारत से तेंदूपत्ता भेजा जाता है. यही वजह है कि इसकी बढ़ती मांग को लेकर सरकार ने आदिवासियों की जरूरत का खास ख्याल रखा है.l
बेमौसम बारिश ने भिगो दिया तेंदू पत्ता
बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर विकासखंड में बेमौसम बरसात ने तेंदू पत्ता बेचने वाले की चिंता की लकीर खींच दिया है क्योंकि रामचंद्रपुर के ग्राम भीतर चुरा सहित कई जगह पर बेमौसम बारिश से तेंदू पत्ता भीग गई है l