शिक्षक दिवस के अवसर पर भरतपुर सोनहत विधानसभा क्षेत्र की टॉपर छात्राओं को विधायक रेणुका सिंह द्वारा स्कूटी देने की घोषणा का वादा भले ही पूरा हुआ हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस तरह के प्रतीकात्मक उपहार वास्तव में छात्रों के भविष्य को संवारने में कारगर साबित होते हैं?
अंकिता रजक की आर्थिक समस्याएं और स्कूटी का सवाल :
अंकिता रजक, जिन्होंने 12वीं में 91.20% अंक लाए और जिन्हें स्कूटी दी गई, की कहानी वास्तव में समाज के उन अनदेखे पहलुओं की ओर इशारा करती है जहाँ वास्तविक समस्या आर्थिक तंगी है। अंकिता का सपना न्यूरो सर्जन बनने का है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इस राह में सबसे बड़ी बाधा है। उनके पिता इस हालत में नहीं हैं कि वे आगे की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। ऐसे में सवाल उठता है कि स्कूटी से उनका सपना कैसे पूरा होगा? सोशल मीडिया पर कुछ दिनों पहले ही लोगों से आर्थिक मदद की गुहार लगाई गई थी, तो क्या इस तरह की स्कूटी या अन्य प्रतीकात्मक पुरस्कार उनकी वास्तविक जरूरतों को पूरा कर सकते हैं?
प्रशासन का ध्यान असली समस्याओं से भटका :
शिक्षा के क्षेत्र में विकास के नाम पर टॉपर छात्रों को स्कूटी या हेलीकॉप्टर की सैर देना क्या एक स्थायी समाधान है? क्या इसका असली उद्देश्य छात्रों को प्रोत्साहित करना है या जनता का ध्यान भटकाना? ऐसी योजनाएँ कितनी टिकाऊ हैं, जब छात्रों को उनकी पढ़ाई के लिए जरूरी आर्थिक सहायता या संसाधन नहीं मिलते?
भविष्य की योजनाएँ या राजनीतिक खेल? :
विधायक रेणुका सिंह ने भविष्य में लैपटॉप और हेलीकॉप्टर से दिल्ली भ्रमण की योजनाओं की घोषणा की, लेकिन क्या ये योजनाएँ वास्तव में शिक्षा में कोई ठोस योगदान दे पाएंगी? क्या छात्रों के लिए उनकी शिक्षा को सरल और सुलभ बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, या यह सब केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है?
वास्तविकता से कटा प्रोत्साहन
प्राचार्य दीपक सिंह बघेल ने विधायक के इस कदम की सराहना की, लेकिन क्या यह सराहना वास्तव में उन छात्रों की जरूरतों को समझकर की गई है? अगर अंकिता जैसी छात्राओं को आर्थिक मदद दी जाती या उनके उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप की व्यवस्था होती, तो क्या यह बेहतर कदम नहीं होता?