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इतिहास की किताबों में हमारे नायकों के साथ अन्याय हुआ है : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा किइतिहास की किताबों में हमारे नायकों के साथ अन्याय हुआ है। हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई और कुछ लोगों का एकाधिकार स्थापित किया गया कि उन्होंने हमें आजादी दिलाई। यह हमारी अंतरात्मा को कचोटने वाली असहनीय पीड़ा है और हमारी आत्मा और हृदय पर बोझ है। उन्होंने कहा कि हमें इसके लिएबड़ा बदलाव लाना होगा। जो1915 केतत्कालीन प्रथम भारत सरकार के गठन से बेहतर अवसर जैसा कुछ नहीं हो सकता।

नई दिल्ली के भारत मंडपम में राजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंती समारोह कोआज मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप एक जन्मजात राजनयिक और राजनेता, दूरदर्शी तथा राष्ट्रवादी थे। उन्होंने कहा कि राजा महेन्द्र प्रताप ने राष्ट्रवाद, देशभक्ति और अपनी दूरदर्शिता से दिखाया किराष्ट्र के लिए क्या किया जा सकता है।

स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों को मान्यता न मिलने पर पीड़ा व्यक्त करते हुएश्री धनखड़ ने कहा कि न्याय का यह कैसा उपहास है, कितनी त्रासदी है। उन्होंने कहा कि हम अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में हैं, परऐसे महान व्यक्ति के वीरतापूर्ण कार्यों को पहचानने में असफल,बुरी तरह विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन नायकों को हमारे इतिहास ने वह स्थान नहीं दिया जिसके वे हकदार हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि यदि हमारी स्वतंत्रता की बुनियाद को देखा जाए तो हमें पता चलता है कि हमें बहुत अलग तरीके से पढ़ाया गया है। हमारी स्वतंत्रता की बुनियाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह और अन्य गुमनाम नायकों के सर्वोच्च बलिदानों पर आधारित है, जिन्हें इतनी अच्छी तरह प्रचारित नहीं किया गया।

वर्ष 1932 में मानवता के पक्षधर इस महान आत्मा, दूरदर्शी नेता को एनए नीलसन ने नोबेलशांति पुरस्कार के लिए नामित किया था जिसका आधार वही था जिसके लिएमहात्मा गांधी को प्रसिद्धि मिली थी, दक्षिण अफ्रीका में उनका अभियान। श्री धनखड़ ने कहा कि उस महान नेता का व्यक्तित्व नामांकन के हर शब्द में परिलक्षित होता है।

इतिहास लेखन में कुछ राष्ट्रीय नायकों की अनदेखी की दुर्भाग्यपूर्ण प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुएउपराष्ट्रपति ने कहा कि भूमिका निभाने वाले उन लोगों को कृपालु, चाटुकार का श्रेय देकर इतिहास पोषित नहीं कर सकतेपरदूसरों की भूमिका की भी अनदेखी नहीं की जा सकती।उन्होंने कहा कि हम अपने नायकों कम कद्दावर बताने की अनुमति नहीं दे सकते। श्री धनखड़ ने कहा कि आज हम उन्हीं में से एक की चर्चा कर रहे हैंक्योंकि मौजूदातथा आने वाली पीढ़ियों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए अप्रकाशित ऐतिहासिक वृत्तांत देना अनिवार्य है।

उपराष्ट्रपति ने विकसित देश का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसानों के कल्याण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।श्री धनखड़ ने कहा कि हर बार उनके मस्तिष्क में यह विचार आता है कि हमें स्वतंत्र भारत में क्या करने की आवश्यकता है जिससे हमारे लोगों की उपलब्धियों को उचित सम्मान और मान्यता मिले। उन्होंनेकहा कि वर्तमान व्यवस्था अच्छी है, तेज आर्थिक प्रगति हो रही है। अवसंरचना में भी अभूतपूर्व विकास हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की वैश्विक छवि भी बेहद अच्छी है, लेकिन 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की पूर्व शर्त है कि किसानों को खुशहाल बनाया जाए।

किसानों से बातचीत और चर्चा द्वारा उनके मुद्दों के समाधान का आग्रह करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि हमें अपने लोगों से नहीं लड़ना है,हमें अपनों को गले लगाना है। उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं का तेजी से समाधान किए बिना चैन से नहीं बैठना है। उन्होंने किसानोंसे बातचीत और आपसी समझ से समस्याओं के समाधान का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप भी इसी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते थे।

श्री धनखड़ ने कहा कि हमें समाधान के लिए खुलेपनऔरचर्चा कीनीति अपनानी होगी। उन्होंने कहा कि ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले हमारे देश में किसान भाईयों तक उनका संदेश जरूर पहुंचेगा और वे इस पर ध्यान देंगे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें विश्वास है किदोनों पक्षों की सकारात्मक ऊर्जा से किसानों की समस्या का त्वरित समाधान होगा।

किसानों को हर संभव सहायता का आश्वासन देते हुए उपराष्ट्रपति ने अब भविष्य पथ पर सकारात्मकता से आगे बढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो हुआ वह अतीत में हुआलेकिन अब हमें सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि विकसित भारत का निर्माण कृषिभूमि से शुरू होता है और विकसित भारत का मार्ग खेतों से होकर निकलता है, इसलिए किसानों के मुद्दों का तेजी से समाधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों की पीड़ा से राष्ट्र का मान-सम्मान प्रभावित होता हैऔर ऐसा इसलिए अधिक होता  है क्योंकि हम दिल की बातें अपने तक ही रखते हैं, संवाद नहीं हो पाता। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे इस शुभ अवसर पर संकल्प लेते हैं कि किसानों की समस्याओं के समाधान के लिएउनके द्वार24 घंटे खुले रहेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा करके वे आजादी को नया आयाम देने में योगदान देंगे जिससे राजा महेंद्र प्रताप की आत्मा को शांति मिलेगी।

कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं पर पर्याप्त ध्यान न दिए जाने पर सवाल उठाते हुएश्री धनखड़ ने कहा कि हाल में कोटरा, उदयपुर मेंबिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती के आयोजन समारोह में उन्हेंदिल दहला देने वाले1913 के मंगर हिल नृशंस प्रकरण की जानकारी मिली। जलियांवाला बाग से बहुत पहले, उस वर्ष 1913 में, 1507 आदिवासियों को ब्रिटिश सरकार ने गोलियों से छलनी कर दिया था। पर इस नरसंहार, नृशंस कृत्य को इतिहास में ज्यादा स्थान नहीं दिया गया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे यह इंगित करने का प्रयास कर रहे हैं कि महाराजा सूरजमल औरराजा महेंद्र प्रताप सिंह की देशभक्ति गाथा के साथ ही इस तरह की ब्रिटिश बर्बरता कीइतिहास में उपेक्षा की गई है और उन्हें इतिहास में जगह नहीं दी गई।उपराष्ट्रपति ने कहा कि राजा महेन्द्र प्रताप जयंती समारोह का यह विशेष अवसर इस दिशा में उल्लेखनीय अवसर साबित होगा।

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