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जिले का एक ऐसा गांव जिसे लोग वीर सपूतों के गांव नाम से जानते है

रिपोर्टर : लोकेश्वर सिन्हा

गरियाबंद। गरियाबंद जिले का एक ऐसा गांव जिसे लोग वीर सपूतों के गांव के नाम से जानते है, इस गांव के युवा बचपन से ही देश सेवा के प्रति मन में ठान लेते है, की उन्हे पढ़ लिखकर मातृ भूमि भारत माता की सेवा करना है, पूरे गांव भर में 100 से ज्यादा युवा शासकीय सेवाएं दे रहे है, जिनमे 58 युवा ऐसे है, जो डिफेंस, पैरामिलिट्री फोर्सेज में देश के अलग-अलग क्षेत्रों में मातृ भूमि की सेवा कर रहे है, आइए जानते है, वीर सपूतों के गांव की कहानी।

गरियाबंद जिला मुख्यालय से महज ही 3 किमी में बसे 2500 आबादी का गांव है, सढ़ौली जहां के बच्चे होस सम्हालने के बाद मातृ भूमि की सेवा देश सेवा करने के लिए मन में ठान लेते है, और देश की सेवा के लिए भारत माता के प्रति कूट कूट कर देश सेवा जागृत हो जाता है, स्कूली बच्चे से जब हमने जानना चाहा तो स्कूल के पढ़ रहे बच्चो ने देश सेवा करने की इच्छा जाहिर की आपको बता दे की सढोली गांव भर में आपको प्रत्येक घर के युवा पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ, CAF के पद में सेवाए दे रहे है।

गांव में जब कभी भी किसी राष्ट्रीय त्यौहार गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पूरा गांव देश भक्ति में डूब जाता है, पूरे जिले ही नही बल्कि प्रदेश भर की बात करूं तो यह पहला ऐसा गांव है, जिसे वीर सपूतों के गांव के नाम से जाना जाता है, हमने गांव के शहिद भृगु नंदन चौधरी के माता जी से बात करना चाहा तो शहीद की मां फफक कर रो पड़ी भृगुनंदन चौधरी बिहार के गया, जिला में नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे, भारत के राष्ट्रपति के हाथो शहीद की माता को सम्मानित किया गया था, गांव में आज हर युवा पुलिस की सेवा में रहकर भारत मां की सेवा करना चाहता है।

सढ़ौली गांव पूरे जिले भर में अपनी अलग पहचान बनाती है, पूरे गांव भर की बात करें तो सभी के घरों में आपको देश सेवा में लगे जवानों की तस्वीर दीवारों में चश्पा नजर आयेगा, और सभी के घरों के बच्चे देश सेवा के लिए अभी से अपना लक्ष्य बनाकर पढ़ाई कर रहे है, ऐसे में सढ़ौली गांव के युवाओं को आने वाले समय में देश सेवा करने का मौका मिले एवं वीर सपूतों के गांव में देश के प्रति यूं ही मातृ भूमि के प्रति जो देश प्रेम जागृत हो रहा है, वो जारी रहे इसे लेकर गांव की नई पीढ़ी भी सेना में जाने की तैयारी में लगे हुए है।

3 गांव के युवाओं की डिफेंस में जाने की परिपाटी 1981 से शुरू हुई, 2001 में कारगिल युद्ध के बाद युवाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया, हर बार हुई भर्ती में डिफेंस में कोई न कोई चुन लिए जाते हैं, गांव के बाहर बने अस्थाई ट्रेनिंग ग्राउंड में हर साल 30 से 50 युवा भर्ती की फिजिकल तैयारी करते है, पुराने अनुभवी लोग नए युवा को न केवल ट्रेंड कराते है, बल्कि आर्थिक रोड़ा आया तो उसे भी आपसी सहयोग कर दूर कर देते हैं, डिफेंस में हर कोई जाना चाहता है, पर किस्मत ने साथ नहीं दिया तो नगर सैनिक तक बन कर सेवा देने में कोई गुरेज नहीं करते, उन्हे अपने साथियों पर गर्व होता है, पुलिस प्रशासन भी इस गांव को पूरी सम्मान की दृष्टि से देखता है, समस्या न आए इस बात का भी पूरा खयाल पुलिस रखती है।

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