छह माह बाद भी नहीं बिके 30 लाख के गोबर पेंट
कोरबा। चिर्रा गोठान से आत्मनिर्भर हो रही महिलाओं को अब आर्थिक तंगहाली के दौर से गुजरना पड़ रहा है। आजीविका मिशन और रूर्बन इंडस्ट्रियल पार्क (रीपा) के तहत चल रहे विभिन्न कारोबार ठप पड़ने के कगार में आ गए हैं। 30 लाख का गोबर पेंट बिक्री के अभाव में चार माह से जाम पड़ा हैं। गोबर खरीदी व पेंट की बिक्री बंद होने की वजह से पेंट बनाने की मशीन भी गोठान में उपयोगहीन है। चिर्रा गोठान को कभी जिला ही नहीं प्रदेश भर में माडल के रूप में देखा जाता था। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यहां पहुंच कर स्वयं महिलाओं की पीठ थपथपाई थी।
गोठान में अब रीपा योजना के तहत संचालित योजनाएं दम तोड़ने लगी हैं। महिलाओं की आर्थिक दर्शा सुदृढ़ होने के बजाए दिनों दिन दयनीय होती जा रही है। गोठान में कार्यरत चंद्रमुखी महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष ललिता राठिया का कहना है कि रीपा के तहत लघु उद्योग महिला चलाना चाहती हैं। बंद हो चुके गोठान योजना को फिर से शुरू किया जाए। गोबर से पेंट बनाने की मशीन साल भर पहले लगाई गई थी। प्रारंभ में इस मशीन से महिलाओं पेंट की बिक्री ढाई लाख रूपये की कमाई की थी। बिक्री बढ़ने के अनुमान पेंट बनाने का काम जारी रहा लेकिन बिक्री नहीं होनेे के कारण अभी 20 हजार लीटर पेंट गोठान में जाम है।
प्रति लीटर 150 रूपये की दर से बिक्री हो रही थी। गोठान में गोबर खरीदी के अलावा पेंट की बिक्री बंद होने से मशीन भी बंद है। महिलाएं आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ना चाहती हैं। रीपा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रशासन सहयोग करें। गोबर की बिक्री कर घर की सब्जी भाजी के लिए महिलाएं आय अर्जित कल लेती थी, वह भी बंद हो गया है। गोबर से जैविक खाद बनाने काम गोठान में बंद हो चुका है। गोमूत्र से तैयार होने वाली कीटनाशक दवाएं भी बनना बंद हो चुका है। महिलाओं ने बताया कि रीपा की कुछ योजनाएं अभी भी चल रही है। इनमें मसाला कारोबार प्रमुख है। इसके अलावा फ्लाईएश ईंट बनाने का भी काम चल रहा है। कोसा धागाकरण का काम हो चुका है बंद महिलाओं को आर्थिक रूप स्वावलंबी बनाने के लिए गोठान में कोसा धागाकरण के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इसके लिए उन्हे बुनियाद मशीन भी दी गई है। कोसा आपूर्ति नहीं होने की वजह से मशीन कबाड़ में तब्दील हो रही है। महिलाओं का कहना है कि धागाकरण के काम को शुरू करने के लिए समूहों को रेशम विभाग कोसाफल की आपूर्ति कराई जाए। कोसा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अर्जुना पौधों की रोपाई की योजना बन रही थी, लेकिन गोठान बंद होने के कारण रीपा की अधिकांश योजनाएं बंद हो चुकी है।
तेंदूपत्ता व अन्य वनोपज संग्रहण की ओर वापसी
रीपा में संचालित उद्योगों के ठप पड़ने के कारण समूह की महिलाएं फिर वनोपज पर निर्भर हो गई हैं। इन दिनों गांव में तेंदूपत्ता संग्रहण का काम चल रहा रहा है। सुबह से ही महिलाएं पत्ता संग्रहित करने चली जाती हैं। तेंदूपत्ता का सीजन पखवाड़े भर का ही रहता है। इसके बाद महिलाओं को अब सरई संग्रहण का इंतजार है। महिलाओं का कहना है कि वनोपज संग्रहण इतना लाभ नहीं मिल पाता कि घर का जीवकोपार्जन चले। रीपा में स्थापित उद्योगों को सुचारू रूप से संचालित की दिशा प्रशासन से सहयोग की दरकार है।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा ग्रहण
मधुमक्खी पालन व डेयरी योजना में भी लगा ग्रहण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यहां लघु उद्योगाें को बढ़ावा देने के लिए मधुमक्खी पालन व डेयरी फार्म की भी शुरूआत की गई थी। कांग्रेस के सत्ता में रहते विभागों सहयोग मिल रहा था। योजनाओं के मूर्तरूप लेने के पहले अधिकारियों के हाथ खड़ा करने के कारण योजनाओं का क्रियांवयन बंद हो गया। गोठानों को चारा से समृद्ध करने के लिए कभी चिर्रा से नेपियर रूट की आपूर्ति होती थी लेकिन गोठानों के बंद होन से यह कारोबार भी बंद हो गया है।