छत्तीसगढ़

खरीफ फसल की सुरक्षा के लिए इस वर्ष भी प्रदेश में चलाया जाएगा रोका-छेका अभियान

ग्राम स्तर पर रोका-छेका अभियान और सभा का होगा आयोजन

खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण के साथ पशुओं के व्यवस्थापन और गोधन सुरक्षा की होगी व्यवस्था

कृषि विभाग ने सभी कलेक्टरों और जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को जारी किए निर्देश

रायपुर। राज्य में खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण और उनसे खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिए इस वर्ष भी रोका-छेका का अभियान शुरू किया जा रहा है। रोका-छेका छत्तीसगढ़ की पुरानी पंरपरा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर इसे अभियान के रूप में राज्य में शुरू किया गया है, जिसके बड़े ही उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य में चालू वर्ष के दौरान यह अभियान पुनः चलाया जा रहा है। इस संबंध मेें नवा रायपुर स्थित मंत्रालय से कृषि विभाग ने सभी कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को गांवों में 17 जुलाई तक स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप रोका-छेका अभियान चलाने के दिशा-निर्देश आज जारी कर दिए गए हैं।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य में खरीफ फसल बुआई कार्य के पूर्व खुले में चराई कर रहे पशुओं के नियंत्रण के लिए ’रोका छेका’ प्रथा प्रचलित है, जिसमें फसल बुआई को बढ़ावा देने तथा पशुओं के चरने से फसल को होने वाली हानि से बचाने के लिये पशुपालक तथा ग्रामवासियों द्वारा पशुओं को बांधकर रखने पहटिया (चरवाहा) की व्यवस्था इत्यादि कार्य किया जाता है। इस प्रयास से न सिर्फ किसान जल्दी बुआई का काम कर पाते हैं, बल्कि दूसरी फसल लेने हेतु भी प्रेरित होते हैं।

कृषि विभाग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि विगत वर्ष की भांति इस वर्ष भी रोका-छेका प्रथा के अनुसार व्यवस्था की सुनिश्चितता की जाए। इसके लिए ग्राम स्तर पर 17 जुलाई तक स्थानीय परिस्थिति के अनुरूप रोका-छेका अभियान चलाकर सभा आयोजित की जाये। साथ ही सभी निर्मित गौठानों में 30 जुलाई से पहले चारागाह की स्थापना की जाए। जहां चारा उत्पादन हो। इन कार्यों के लिए स्थानीय प्रचार-प्रसार कर ग्रामीणजनों की सहभागिता सुनिश्चित के भी निर्देश दिए गए हैं।
अधिकारियों को रोका-छेका अभियान के तहत ग्राम स्तर पर बैठकें आयोजित करने कहा गया है, जिसमें ’रोका छेका’ प्रथा के अनुरूप पशुओं से फसल बचाव का निर्णय ग्राम सरपंच, पंच, जनप्रतिनिधियों तथा ग्रामीणों के द्वारा लिया जाएगा। फसल को चराई से बचाने हेतु पशुओं को गौठान में नियमित रूप से लाये जाने के संबध में प्रत्येक गौठान ग्राम में मुनादी कराने और गौठानों में पशु चिकित्सा तथा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन के निर्देश भी दिए गए हैं।
जारी निर्देश में ’रोका छेका’ प्रथा अंतर्गत गौठानों में पशुओं के प्रबंधन व रखरखाव की उचित व्यवस्था हेतु गौठान प्रबंधन समिति की बैठक आयोजित करने भी कहा गया है। ऐसे गौठान जो सक्रिय परिलक्षित नहीं हो रहे हों, वहाँ आवश्यकतानुसार प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से समिति में संशोधन कर सदस्यों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही पहटिया, चरवाहे की व्यवस्था से पशुओं का गौठानों में व्यवस्थापन सुनिश्चित करने कहा गया है।
कृषि विभाग द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि वर्षा के मौसम में गौठानों में पशुओं की सुरक्षा हेतु व्यापक प्रबंध किया जाये। वर्षा से जल भराव की समस्या दूर करने के लिये गौठानों में जल निकास की समुचित व्यवस्था की जाये तथा गौठान परिसर में पशुओं के बैठने के लिए कीचड़ आदि से मुक्त स्थान की उपलब्धता सुनिश्चित की जाये। वर्षा और बाढ़ से गोधन न्याय योजना के माध्यम से क्रय गोबर से उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट एवं सुपर कम्पोस्ट को सुरक्षित रखने के प्रबंध किये जाएं। जैविक खेती हेतु वर्मी कम्पोस्ट की महत्ता को व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये। गोधन न्याय योजना अंतर्गत उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग हेतु कृषकों को प्रेरित किया जाये। गौठान में पर्याप्त चारा, पैरा आदि की व्यवस्था की जाये। ग्रीष्मकालीन धान की फसल के पैरा हेतु कृषकों को प्रेरित किया जाए।

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